रायपुर। बस्तर में नक्सलियों से मुकाबले के लिए बनाई जा रही बस्तर फाइटर्स फोर्स में शामिल होने के लिए वहीं के यानी ऐसे स्थानीय युवा सामने आ रहे हैं, जिनके परिजनों को या तो नक्सलियों ने ही मार दिया, या लाल आतंक की वजह से जिन्हें अपना घर-बार और गांव छोड़ना पड़ा।
बस्तर फाइटर्स में 2100 पदों पर ही भर्ती होनी है, नक्सलियों ने इस फोर्स में शामिल होने वालों को नुकसान भुगतने की खुली चेतावनी दे रखी है, इसके बावजूद 21 सौ पदों के लिए 53 हजार आवेदन आ गए हैं। इनमें से 40 फीसदी युवा ऐसे लोग हैं, जिनके परिवार को नक्सली गंभीर नुकसान पहुंचा चुके हैं। 15000 लड़कियां भी इस फोर्स को ज्वाइन करना चाहती हैं। ज्यादातर का उद्देश्य एक ही है-नक्सलियों से बदला। बस्तर आईजी सुंदरराज बताते हैं कि बस्तर फाइटर्स में भर्ती के लिए स्थानीय युवाओं में खासा उत्साह है।
घोर नक्सली इलाकों में युवक ही नहीं, युवतियों ने भी बड़ी संख्या में आवेदन किया है
7 जिलों में 2100 लोगों की भर्ती करनी है। इसमें 37498 युवक और 15822 युवतियां आवेदन कर चुकी हैं। 16 ट्रांसजेंडर में भी सामने आए हैं। नक्सलियों की धमकी के बाद भी तड़के युवक से युवक-युवती जंगलों में प्रैक्टिस कर रहे हैं।
हर मुख्यालय में अधिकारी दे रहे ट्रेनिंग
बस्तर में एएसपी ओपी शर्मा अपने स्टाफ के जरिए से 400 से ज्यादा युवकों को पिछले 7 महीने से ट्रेनिंग दे रहे हैं। उनके रहने, खाने से लेकर हर तरह की व्यवस्था की जा रही है। सुकमा एसपी सुनील शर्मा, दंतेवाड़ा में टीआई जीतेंद्र ताम्रकर, कोंडगांव में राहुल देव शर्मा समेत अलग-अलग अधिकारी युवक-युवतियों को प्रैक्टिक्स करा रहे हैं। ये लड़के-लड़कियां जंगल के बीच से आए हैं।
बस्तर बटालियन, डीआरजी के बाद अब फाइटर्स
2014 में सीआरपीएफ ने बस्तर बटालियन की भर्ती की थी। इसमें बस्तर संभाग के 780 स्थानीय लोगों का चयन किया गया। उसके बाद 2016 में डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) की भर्ती की गई। इसमें 800 लोगों की भर्ती हुई। डीआरजी को सबसे खतरनाक दस्ता माना जाता है। इनसे नक्सली भी खौफ खाते है, क्योंकि ये नक्सलियों की भाषा, जंगल का रास्ता और ग्रामीणों से कम्यूनिकेशन बहुत अच्छा है। इन्हीं के तर्ज पर अब बस्तर फाइटर्स की भर्ती की जा रही है।
चाचा की नक्सलियों ने कर दी थी हत्या: जगदीश
दंतेवाड़ा के 21 वर्षीय जगदीश ने बताया कि 6 साल पहले उसके चाचा की नक्सलियों ने हत्या कर दी। फिर उसका परिवार दंतेवाड़ा आ गया। यही नहीं, कई युवक नक्सलियों के खौफ से पिछले 6 साल से अपने घर नहीं गए हैं। माता-पिता से नहीं मिल पा रहे हैं। वह भी फोर्स का हिस्सा बनेगा।
बस्तर फाइटर्स…इसलिए महत्वपूर्ण
- जंगल में स्थानीय भाषा, रास्तों को लोकल होने के कारण समझना आसान।
- बस्तर बटालियन-डीआरजी के कारण फोर्स का नुकसान काफी कम हुआ।
- अफसरों के मुताबिक वारदातों में 60% तक कमी है। लोकल फोर्स से लाभ दिख रहे हैं।
- नक्सलियों को जंगलों में युवा नहीं मिल रहे। रोजगार से आतंकी कैडर खत्म हो रहा।
- जो फोर्स में भर्ती होना चाहते हैं, उनका गुस्सा और दर्द
ताड़मेटला में पिता को मार डाला, इसलिए फोर्स में जाऊंगा
18 साल के मनोज (बदला हुआ नाम) ने बताया कि 2007 में ताड़मेटला में उसके पिता को नक्सलियों ने मार दिया। वह भी पिछले 4 साल से अपने गांव नहीं जा पाया है। जबसे नक्सलियों को पता चला कि वह फोर्स में जाना चाहता है, उसके परिवार को धमकियां मिल रही हैं। इसके बाद भी वह फोर्स में जाने की तैयारी में जुट गया है। वह फोर्स में जाकर अपने लोगों की मदद करना चाहता है।
नक्सलियों ने गांव उजाड़ा अब उसे बसाने जाना है
सुकमा की 19 साल की कुमारी सुशीला ने अब तक अपना गांव नहीं देखा है। बहुत छोटी थी, तब नक्सलियों ने उनके गांव को उजाड़ दिया, पिता को मारा इसलिए गांव छोड़ना पड़ा। वह अब जंगलों में फिर गांव बसाना चाहती है। सुशीला जगदलपुर में रहकर भर्ती की तैयारी कर रही है।
बड़ा भाई नक्सल कमांडर छोटा भाई जाएगा फोर्स में
सुकमा से 35 किमी दूर जंगल निवासी अजय सिंह (बदला नाम) ने बताया कि पिछले 4 साल से घर नहीं जा सका। नक्सली 9-10 साल के उसके बड़े भाई को जंगल ले गए। वह तब से नहीं लौटा और कमांडर बन गया। सब छूट गया, लेकिन वह लौटकर अपने लोगों की मदद करना चाहता है।